Friday, March 9, 2012

विडम्बना : आम इंसान होने की

कितने राजा आये,
कितने शेहेनशाह गुज़रे,
पर वोह वही रहा

किले फ़तेह कर लिए जाए,
या बनवा लिये जाए ताज कई,
मरता वो ही है
वोह जिससे पूछा भी नहीं जाता की वोह किसकी तरफ है,
मरता वोह ही है

किले फ़तेह करने में , ताज बनाना में,
और मेहेंगाई में भी,
मरता वोह ही है

गलती कोई भी करे
पर हरज़ाना उसकी पूरी कौम को भरना पड़ता है
पर उसमे भी भरता वोह ही है…
वोह जिसका इन बातों से कोई लेना देना ही नहीं,
वोह जिसे सिर्फ अपनी रोज़ी-रोटी की चिंता होती है,
मरता वोही है, सिर्फ वोही.

मरता वो ही है,
और उसके निशान रेत पे बनते है,
फिर लहरों के साथ चले जाते है…

समाप्त: इस उम्मीद के साथ की कभी शायद उसे भी ज़िन्दगी मिले

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